कम जोखिम के साथ ज्यादा रिटर्न पाने का जरिया
एक्सचेंज टे्रेडेड फंड में म्यूचुअल फंड और शेयर दोनों की विशेषताएं होती हैं। यह एक म्यूचुअल फंड योजना होती है, क्योंकि यह इक्विटी इंडेक्स, बॉन्ड या कमोडिटी को ट्रैक कoरती हैं। ईटीएफ मूलत: इंडेक्स फंड होते हैं जो स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड होते हैं और अपने टारगेट इंडेक्स की कीमत प्रदर्शन को गहराई से ट्रैक करते हैं। जहां तक ईटीएफ और अन्य इंडेक्स फंड में मुख्य अंतर की बात है, ईटीएफ अपने संबंधित इंडेक्स से आउटपरफॉर्म करने की कोशिश नहीं करते बल्कि उनके प्रदर्शन को ही अपनाने की कोशिश करते हैं। दूसरी तरफ, इंडेक्स फंड इंडेक्स से बेहतर प्रदर्शन की कोशिश करते हैं।
जहां तक प्रबंधन की रणनीति सवाल है, एक्सचेंज टे्रडेड फंड पैसिव मैनेजमेंट का तरीका अपनाते हैं। कई तरह के ईटीएफ ऐसे भी हैं जो एक्टिव तरीके से मैनेज किए जाते हैं, लेकिन फिलहाल ऐसे उत्पाद भारत में उपलब्ध नहीं हैं।
ई-कमोडिटी के फायदे
ई-कमोडिटी कारोबार के कई फायदे हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें आप बहुत छोटी राशि में भी निवेश कर सकते हैं। दूसरी बात, ई-कमोडिटी में निवेशक बिना कोई होल्डिंग चार्ज दिए निवेश बनाए रख सकते हैं, जबकि ईटीएफ के मामले में एएमसी इसके लिए शुल्क वसूलते हैं। तीसरी बात, फ्यूचर मार्केट की तरह इसमें आपको कॉन्ट्रैक्ट एक्सपायरी के बाद अपने पोजीशन को रोल ओवर की जरूरत नहीं होती। इसके अलावा ई-कमोडिटी में आप अपनी होल्डिंग को फिर से भौतिक स्वरूप में बदल सकते हैं। फ्यूचर में भी आप ऐेेेसा कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए आपको बहुत पैसा लगाकर भारी मात्रा में डिलिवरी लेनी होगी। इसी तरह, ई-कमोडिटी में एसेट के मालिक आप खुद होते हैं, जबकि ईटीएफ में एसेट का स्वामी एएमसी होता है। इसी तरह एक फायदा यह है कि ई-कमोडिटी कारोबार में आप एसआईपी के द्वारा निवेश कर सकते हैं, लेकिन फ्यूचर मार्केट में ऐसा संभव नहीं है।
ई-कमोडिटी में निवेश करना किफायती भी है क्योंकि इसमें किसी तरह का होल्डिंग या स्टोरिंग चार्ज नहीं लगता और कोई एएमसी चार्ज भी नहीं लगता। इसलिए ई-कमोडिटी से मिलने वाला रिटर्न ईटीएफ के मुकाबले ज्यादा होता है। इसी तरह, असल धातुओं में निवेश करने के लिहाज से ई-कमोडिटी में निवेश ईटीएफ से बेहतर होता है क्योंकि ईटीएफ दूसरे एसेट में भी निवेश करते हैं।
टे्रडिंग का तरीका
ई-कमोडिटी में टे्रडिंग बहुत हद तक सिक्यूरिटीज में टे्रडिंग करने के जैसा ही है। इस मामले में अंतर बस इतना है कि एनएसई या बीएसई पर कारोबार की जगह आप एनएसएईएल के प्लेटफॉर्म पर कारोबार करते हैं। जो लोग ई-कमोडिटी में टे्रड करना चाहते हैं, उन्हें एनएसईएल के पैनल वाले डिपॉजिटरी पार्टिसिपिटरी (डीपी) के यहां एक बेनिफिसियरी एकाउंट खोलना होगा। ई-कमोडिटी कारोबार शेयरों के कारोबार के लिए खोले जाने वाले डीमैट एकाउंट से नहीं हो सकता। कमोडिटी यूनिट को इलेक्ट्रॉनिक फार्मेट में रखने के लिए एनएसडीएल और सीडीएसएल डिपॉजिटर का काम करते हैं।
इसके अलावा ई-कमोडिटी कारोबार करने वालों को एनएसईएल के सदस्य के यहां एक टे्रडिंग एकाउंट खोलने की जरूरत होती है। इन सब औपचारिकताओं के बाद आप वीसैट या इंटरनेट के माध्यम से एनएसईएल के इलेक्ट्रॉनिक टे्रडिंग प्लेटफॉर्म पर कमोडिटी कारोबार कर सकते हैं।
कितना शुल्क लगता है
शुरुआत में आप कमोडिटी कीमत के 5 फीसदी के बराबर राशि अदाकर खरीद कर सकते हैं। इसके बाद आपको अपने डीमैट एकाउंट में कमोडिटी की डिलिवरी के लिए १० फीसदी और रकम मार्जिन के रूप में देना पड़ता है।
बाकी राशि आपको दो कार्यदिवसों के भीतर जमा करनी पड़ती है। आपको ०.३ फीसदी का डिलिवरी ब्रोकरेज भी देना पड़ता है। इसके अलावा, डिलिवरी आधारित लेन-देन के लिए प्रति १ करोड़ रुपए के टर्नओवर पर १,००० रुपए का ट्रांजेक्शन चार्ज भी देना पड़ता है। इंट्रा डे ट्रांजेक्शन के लिए हर ट्रांजेक्शन पर ५०० रुपए का शुल्क लिया जाता है।
डिलिवरी ट्रांजेक्शन का निपटान टी प्लस टू आधार पर सोमवार से शुक्रवार तक होता है, ठीक उसी तरह, जैसे कि इक्विटी मार्केट के कैश सेगमेंट में निपटान होता है। उसी तरह का इसमें पे-इन और पे-आउट तरीका भी होता है।
फिजिकल एसेट में बदलना संभव
ई-कमोडिटी की सबसे रोचक बात यह है कि आप जब चाहें अपने अंडरलाइंग कमोडिटी को भौतिक स्वरूप में बदल सकते हैं। इस मामले में ई-कमोडिटी एकतरह से ईटीएफ से अलग हो जाता है क्योंकि ईटीएफ पर आप अपने गोल्ड ईटीएफ सर्टिफिकेट को असली सोने में नहीं बदल सकते। दूसरी तरफ, फ्यूचर में आप भौतिक रूप से डिलिवरी तो ले सकते हैं, लेकिन इसकी प्रक्रिया जटिल है क्योंकि आप को पूरे लॉट के लिए भुगतान करना पड़ता है जो कि बहुत ज्यादा रकम होती है। आइए देखते हैं कि ई-कमोडिटी को फिजिकल एसेट में कैसे बदला जा सकता है।
सबसे पहले यूनिट होल्डर को अपने ई-कमोडिटी यूनिट को एक्सचेंज के निर्धारित हाउस एकाउंट को ट्रांसफर करना पड़ता है। इन यूनिट को ऑफ मार्केट की प्रक्रिया से मेंबर पूल एकाउंट या बेनिफिशियरी एकाउंट से एक्सचेंज बेनिफिशियरी एकाउंट में क्लीयरिंग से ट्रांसफर किया जा सकता है। इसके बाद यूनिट होल्डर को एक्सचेंज के डिलिवरी सेंटर (एनएसईएल) में डिलिवरी इंस्ट्रक्शन स्लिप (डीआईएस) और अधिकृत व्यक्ति के पहचानपत्र की कॉपी के साथ सरेंडर रिक्वेस्ट फॉर्म (एसआरएफ) जमा करना होगा। इन कागजात को हासिल करने के बाद और हाउस एकाउंट में यूनिट क्रेडिट होने के बाद एक्सचेंज फिजिकल डिलिवरी के लिए जरूरी इंतजाम करता है और सदस्य को डिलिवरी के लिए डिलिवरी सेंट और कन्वर्जन चार्ज के बारे में सूचना देता है। एक्सचेंज से एडवाइस हासिल करने के सात दिनों के भीतर यूनिट होल्डर को डिलिवरी सेंटर जाना होता है और जरूरी धन जमा करने के बाद उसे कमोडिटी की भौतिक आपूर्ति कर दी जाती है।
कर बचत का फायदा
यदि हम गोल्ड ईटीएफ और ई-गोल्ड का उदाहरण लें तो टैक्स के लिहाज से गोल्ड ईटीएफ को एक डेट फंड माना जाता है और इन पर म्यूचुअल फंड की तरह टैक्स लगता है, इसे एक साल से ज्यादा समय तक रखने पर इसमें कैपिटल गेन्स टैक्स भी लगता है। दूसरी तरफ, ई-गोल्ड में निवेश सिर्फ फिजिकल गोल्ड में निवेश जैसा ही माना जाता है, इसलिए उसी के मुताबिक इस पर टैक्स लगता है।
यदि इसे ३६ महीने या उससे कम समय के लिए रखा जाता है तो इस पर मिलने वाले रिटर्न को निवेशक की आय के साथ जोडक़र उस पर कर का न्यूनतम दर लागू किया जाता है। ३६ महीने से ज्यादा तक रखने पर इसमें २० फीसदी का लांग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है।
इसी तरह वेल्थ टैक्स के मामले में ई-गोल्ड पर १ फीसदी का टैक्स लगता है और डिलिवरी के मामले में इसके ट्रांजेक्शन वैल्यू के १ फीसदी तक वैट लगाया जाता है।
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