ऑस्ट्रेलिया से बहुत कुछ सीख सकती है दुनिया
बढ़ती आय, कम सार्वजनिक कर्ज, कल्याणकारी
राज्य, व्यापक आप्रवास को लोगों का समर्थन और
इन चीजों से जुड़ी नीतियों पर व्यापक आमसहमति-
ज्यादातर धनी देशों में यह दूर का सपना है। पश्चिम
के कई राजनेता शायद ही ऐसी जगह की कल्पना
कर सकते हैं, जहां यह सब हो। ऐसा ही देश है
ऑस्ट्रेलिया। शायद यह हर जगह से दूर है या यहां
सिर्फ ढाई करोड़ की आबादी है, इसलिए तुलनात्मक
रूप से इसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं जाता। लेकिन,
इसकी अर्थव्यवस्था धनी देशों में सबसे सफल है।
यह 27 वर्षों से बिना किसी मंदी के बढ़ रहा है, जो
किसी विकसित देश के लिए रिकॉर्ड है। इसकी समग्र
वृद्धि जर्मनी की वृद्धि से लगभग तीन गुना अधिक है।
मध्यम आय अमेरिका की तुलना में चार गुना तेजी से
बढ़ी है। सार्वजनिक कर्ज जीडीपी के 41 फीसदी के
बराबर है, जो ब्रिटेन की तुलना में आधा है।
इसे किस्मत का भी साथ है। ऑस्ट्रेलिया में
बहुत बड़े लोहे और प्राकृतिक गैस के भंडार हंै और
तुलनात्मक रूप से चीन के नज़दीक है, जो ऐसी
चीजें लपक लेता है। लेकिन, ठोस नीति-निर्माण से
भी मदद मिली है। 1991 में पिछली मंदी के बाद
तब की सरकार ने हेल्थकेयर और पेंशन व्यवस्था
में सुधार किया, जिसके तहत मध्यवर्ग को अपने
तरीके से अधिक योगदान देने का प्रावधान था।
इससे भी ज्यादा उल्लेखनीय है आप्रवास के प्रति
ऑस्ट्रेलिया का उत्साह। इसके 29% रहवासी अन्य
देश में जन्मे हैं। अमेरिका के अनुपात में दोगुने। आधे
ऑस्ट्रेलियाई या तो खुद आप्रवासी हैं या आप्रवासियों
की संतान हैं। आप्रवासियों का सबसे बड़ा स्रोत
एशिया है, जो तेजी से देश के नस्लीय चरित्र को
बदल रहा है। इसकी तुलना अमेरिका, ब्रिटेन या
इटली से करें जहां आप्रवासियों के छोटे प्रवाह ने
मतदाता के बड़े वर्ग में शत्रुता को जन्म दिया है।
ऑस्ट्रेलिया के दोनों मुख्य दलों का कहना है कि
बहुत सारे हुनरमंद आप्रवासियों को स्वीकार करना
अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है।
देश का उदाहरण बताता है कि जिन सुधारों
को अन्य जगहों पर असंभव माना जाता है वे
हासिल किए जा सकते हैं। अमेरिका में पेंशन
और हेल्थ केयर की बढ़ती लागत पर लगाम के
प्रस्तावों का डेमोक्रेट विरोध करते हैं, ऑस्ट्रेलिया
में वामपंथ ऐसी नीतियों का पैरोकार होता है।
लेबर पार्टी अनिवार्यप्राइवेट पेंशन को लाभ में
वृद्धि के रूप में मजदूर संगठनों के गले उतारने में
कामयाब रही, क्योंकि तकनीकी रूप से एम्प्लायर
को ही कामगारों की ओर से इन्वेस्टमेंट फंड में
नियमित रूप से भुगतान करना होता है। पार्टी ने
एक बुनियादी पब्लिक पेंशन भी सुनिश्चित की
है, जो केवल उन लोगों को दी जाती है, जो पर्याप्त
व्यक्तिगत बचत कर पाने में असमर्थ रहते हैं।
ऑस्ट्रेलिया ने दिखाया है कि बड़े पैमाने पर
अाप्रवास के लिए भी लोगों का समर्थन हासिल करना
संभव है, फिर चाहे लोग सांस्कृतिक रूप से अलग
जगहों से ही क्यों न आ रहे हों। लेकिन, मतदाताओं
को यह अहसास दिलाना जरूरी है कि सीमाओं की
उचित निगरानी की जा रही है और ऐसा नहीं है कि
हर किसी को आने दिया जा रहा है। किंतु पक्ष-विपक्ष
में सहयोग अनिवार्य है। सबसे पहले दक्षिणपंथी
सरकार ने एशिया से बड़े पैमाने पर आप्रवासियों
को आने की अनुमति दी और 1970 के दशक में
वियतनाम से बहुत सारे शरणार्थी स्वीकार किए।
ऑस्ट्रेलिया की राजनीतिक व्यवस्था भी
मध्यमार्ग को पुरस्कृत करती है। कानून के मुताबिक
सारे पात्र नागरिकों को वोट देना अनिवार्य है और
वे नागरिक जो अन्यथा वोट डालने में दिलचस्पी
नहीं लेते, उनका झुकाव मुख्यधारा के लोगों के प्रति
होता है। समर्थकों के पूर्वग्रहों को पुचकारकर उन्हें
एकजुट करने की कोई जरूरत नहीं। ऑस्ट्रेलिया में
प्रिफरेंशियल वोटिंग है, जिसके तहत मतदाता सिर्फ
एक प्रत्याशी न चुनकर प्रत्याशियों को अपनी पसंद
का क्रम देते हैं। इस प्रणाली का भी संयत प्रभाव
पड़ता है। विडंबना यह है कि इस व्यवस्था के लाभ
जब जाहिर हो रहे हैं, तो ऑस्ट्रेलियाइयों का इससे
मोहभंग हो रहा है। सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी में कुछ
लोग आप्रवास में कटौती करने की बात करने लगे हैं।
महत्वाकांक्षी सुधार भी दुर्लभ हो गए हैं। शेष दुनिया
ऑस्ट्रेलिया से बहुत कुछ सीख सकती है और खुद
ऑस्ट्रेलियाई भी एक रिफ्रेशर कोर्स कर सकते हैं।
© 2018 The Economist Newspaper Limited.
All rights reserved.
राज्य, व्यापक आप्रवास को लोगों का समर्थन और
इन चीजों से जुड़ी नीतियों पर व्यापक आमसहमति-
ज्यादातर धनी देशों में यह दूर का सपना है। पश्चिम
के कई राजनेता शायद ही ऐसी जगह की कल्पना
कर सकते हैं, जहां यह सब हो। ऐसा ही देश है
ऑस्ट्रेलिया। शायद यह हर जगह से दूर है या यहां
सिर्फ ढाई करोड़ की आबादी है, इसलिए तुलनात्मक
रूप से इसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं जाता। लेकिन,
इसकी अर्थव्यवस्था धनी देशों में सबसे सफल है।
यह 27 वर्षों से बिना किसी मंदी के बढ़ रहा है, जो
किसी विकसित देश के लिए रिकॉर्ड है। इसकी समग्र
वृद्धि जर्मनी की वृद्धि से लगभग तीन गुना अधिक है।
मध्यम आय अमेरिका की तुलना में चार गुना तेजी से
बढ़ी है। सार्वजनिक कर्ज जीडीपी के 41 फीसदी के
बराबर है, जो ब्रिटेन की तुलना में आधा है।
इसे किस्मत का भी साथ है। ऑस्ट्रेलिया में
बहुत बड़े लोहे और प्राकृतिक गैस के भंडार हंै और
तुलनात्मक रूप से चीन के नज़दीक है, जो ऐसी
चीजें लपक लेता है। लेकिन, ठोस नीति-निर्माण से
भी मदद मिली है। 1991 में पिछली मंदी के बाद
तब की सरकार ने हेल्थकेयर और पेंशन व्यवस्था
में सुधार किया, जिसके तहत मध्यवर्ग को अपने
तरीके से अधिक योगदान देने का प्रावधान था।
इससे भी ज्यादा उल्लेखनीय है आप्रवास के प्रति
ऑस्ट्रेलिया का उत्साह। इसके 29% रहवासी अन्य
देश में जन्मे हैं। अमेरिका के अनुपात में दोगुने। आधे
ऑस्ट्रेलियाई या तो खुद आप्रवासी हैं या आप्रवासियों
की संतान हैं। आप्रवासियों का सबसे बड़ा स्रोत
एशिया है, जो तेजी से देश के नस्लीय चरित्र को
बदल रहा है। इसकी तुलना अमेरिका, ब्रिटेन या
इटली से करें जहां आप्रवासियों के छोटे प्रवाह ने
मतदाता के बड़े वर्ग में शत्रुता को जन्म दिया है।
ऑस्ट्रेलिया के दोनों मुख्य दलों का कहना है कि
बहुत सारे हुनरमंद आप्रवासियों को स्वीकार करना
अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है।
ऑस्ट्रेलिया ने 27 वर्षों से मंदी नहीं देखी।
आय लगातार बढ़ रही है। जहां धनी देशों
में आप्रवासियों व शरणार्थियों के खिलाफ
शत्रुता बढ़ रही है वहीं, ऑस्ट्रेलिया ने बड़े
पैमाने पर इनका स्वागत किया है। सबसे
बड़ी बात इन सभी मामलों पर राजनीतिक
आमसहमति जिसका अन्य देशों में अभाव है।
देश का उदाहरण बताता है कि जिन सुधारों
को अन्य जगहों पर असंभव माना जाता है वे
हासिल किए जा सकते हैं। अमेरिका में पेंशन
और हेल्थ केयर की बढ़ती लागत पर लगाम के
प्रस्तावों का डेमोक्रेट विरोध करते हैं, ऑस्ट्रेलिया
में वामपंथ ऐसी नीतियों का पैरोकार होता है।
लेबर पार्टी अनिवार्यप्राइवेट पेंशन को लाभ में
वृद्धि के रूप में मजदूर संगठनों के गले उतारने में
कामयाब रही, क्योंकि तकनीकी रूप से एम्प्लायर
को ही कामगारों की ओर से इन्वेस्टमेंट फंड में
नियमित रूप से भुगतान करना होता है। पार्टी ने
एक बुनियादी पब्लिक पेंशन भी सुनिश्चित की
है, जो केवल उन लोगों को दी जाती है, जो पर्याप्त
व्यक्तिगत बचत कर पाने में असमर्थ रहते हैं।
ऑस्ट्रेलिया ने दिखाया है कि बड़े पैमाने पर
अाप्रवास के लिए भी लोगों का समर्थन हासिल करना
संभव है, फिर चाहे लोग सांस्कृतिक रूप से अलग
जगहों से ही क्यों न आ रहे हों। लेकिन, मतदाताओं
को यह अहसास दिलाना जरूरी है कि सीमाओं की
उचित निगरानी की जा रही है और ऐसा नहीं है कि
हर किसी को आने दिया जा रहा है। किंतु पक्ष-विपक्ष
में सहयोग अनिवार्य है। सबसे पहले दक्षिणपंथी
सरकार ने एशिया से बड़े पैमाने पर आप्रवासियों
को आने की अनुमति दी और 1970 के दशक में
वियतनाम से बहुत सारे शरणार्थी स्वीकार किए।
ऑस्ट्रेलिया की राजनीतिक व्यवस्था भी
मध्यमार्ग को पुरस्कृत करती है। कानून के मुताबिक
सारे पात्र नागरिकों को वोट देना अनिवार्य है और
वे नागरिक जो अन्यथा वोट डालने में दिलचस्पी
नहीं लेते, उनका झुकाव मुख्यधारा के लोगों के प्रति
होता है। समर्थकों के पूर्वग्रहों को पुचकारकर उन्हें
एकजुट करने की कोई जरूरत नहीं। ऑस्ट्रेलिया में
प्रिफरेंशियल वोटिंग है, जिसके तहत मतदाता सिर्फ
एक प्रत्याशी न चुनकर प्रत्याशियों को अपनी पसंद
का क्रम देते हैं। इस प्रणाली का भी संयत प्रभाव
पड़ता है। विडंबना यह है कि इस व्यवस्था के लाभ
जब जाहिर हो रहे हैं, तो ऑस्ट्रेलियाइयों का इससे
मोहभंग हो रहा है। सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी में कुछ
लोग आप्रवास में कटौती करने की बात करने लगे हैं।
महत्वाकांक्षी सुधार भी दुर्लभ हो गए हैं। शेष दुनिया
ऑस्ट्रेलिया से बहुत कुछ सीख सकती है और खुद
ऑस्ट्रेलियाई भी एक रिफ्रेशर कोर्स कर सकते हैं।
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